Notification- Shri. Bhuvneshwar Singh (Shri. Bhuvneshwar Singh, Rashtriya Sangathan Mantri Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha, will be available in Goa from 21st to 24th of June. He may be contacted on 9927391000 regarding joining the ABKM organisation.) |

हमारे बारे में

बिहार के राजा खड़ग बहादुरमल्ल मझोली और ठाकुर रामदीन सिंह ठिकानेदार (विलासप्रेस बांकीपुर) ने तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के १८६० के सोसिएटी रजिस्ट्रेशन कानून की कुनीति को भांपते हुए १८६२ में गठित अपजीकृत क्षत्रिय हितकारनी सभा ही १८९७ में क्षत्रिय महासभा के रूप में पंजीकृत हुई | पुन क्षत्रिय महासभा को भंग करके १९८६ में अखिल भारतीय महासभा का गठन हुआ| परन्तु ११३ / १४७ सालों का समाज के श्रेष्ठ संगठनिक पुरुषों के पुरुषार्थ का संकलन पुस्तक के रूप में उपलब्ध नहीं है |

About Us

A Historical Introducton of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha Formelly called Kshatriya Mahasabha Founded by Raja Balwant Singh ji Awagarh with Co-ordination of Rajrshi Raja Udai Pratap Singh ji Bisen ,Bhinga and Thakur Umrao Singh ji Kotla

1857 के स्वतंत्रता के इतिहास का अहम् योगदान था क्षत्रिय सभा के निर्माण में --- अंग्रेजी शासन काल में ,प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजों द्वारा क्षत्रियों के विरुद्ध अपनाई गई कलुषित नीति के विरुद्ध विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए एक खुली अघोषित क्रांति थी जिसका प्रमुख केंद्र बिंदु उत्तर भारत था ।शुरुआत में इसके सूत्रपात्र के दो मुख्य श्रोत "सैनिक क्रांति "और "जन क्रांति "थे ।इसके सूत्रपात्र का जिम्मा शुरुआती दौर में उत्तरप्रदेश ,बिहार ,मध्यप्रदेश ,दिल्ली ,पंजाब (वर्तमान हरियाणा )तथा आँध्रप्रदेश के उत्पीड़ित क्षत्रिय शासकों एवं मुस्लिम नबाबों ने उठाया था ।यह क्षत्रिय -मुस्लिम एकता का अदभुत संगम था ।सयुक्त प्रान्त , आगरा एवं अवध में , अवध की वेगमों ,बनारस के राजा चेत सिंह की फांसी ,रुहेलखण्ड के क्षत्रिय सरदारों के प्रति ईस्ट इंडिया कंपनी की उपेक्षा पूर्ण नीति और दिल्ली के अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफ़र के दो बेटों को दिल्ली में बीच मार्ग पर खड़ा करके गोली मारने की घटना ने आग में घी डालने का काम किया ,साथ ही क्षत्रिय राजाओं को गोद लेने की प्रथा को समाप्त करने की लार्ड डलहौजी की घोषणा ने भी भीषण जनक्रांति को जन्म दिया ।


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Our Events

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा समहारों

शिक्षा एक बेहतर जीवन के अंत के साथ-साथ साधन दोनों है: इसका मतलब यह है कि यह एक व्यक्ति को अपनी आजीविका और अंत कमाने के लिए सशक्त बनाता है,समहारों में सम्मान करते हुए

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा समहारों

शिक्षा एक बेहतर जीवन के अंत के साथ-साथ साधन दोनों है: इसका मतलब यह है कि यह एक व्यक्ति को अपनी आजीविका और अंत कमाने के लिए सशक्त बनाता है,समहारों में सम्मान करते हुए

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा समहारों

शिक्षा एक बेहतर जीवन के अंत के साथ-साथ साधन दोनों है: इसका मतलब यह है कि यह एक व्यक्ति को अपनी आजीविका और अंत कमाने के लिए सशक्त बनाता है,समहारों में सम्मान करते हुए

Our Mission

VISION

विकास और कौशल भारत सेवाएँ

  • क्षत्रियों का सर्वांगीण विकास एवं उन्नति

    भारतीय संस्कृति में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चार लक्ष्य माने गए हैं जिन्हें पुरुषार्थ की संज्ञा दी जाती है – धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष। इन चारों में से मोक्ष सबसे अधिक पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का चरम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः शिक्षा ही मोक्ष की प्राप्ति का एकमात्र साधन माना गया है।

  • उच्चा शिक्षा

    शिक्षा मनुष्य के भीतर अच्छे विचारों का निर्माण करती है, मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। बेहतर समाज के निर्माण में सुशिक्षित नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इंसानों में सोचने की शक्ति होती है इसलिए वो सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है लेकिन अशिक्षित मनुष्य की सोच पशु के समान होती है। वो सही गलत का फैसला नहीं कर पाता। इसलिए शिक्षा मानव जीवन के लिए ज़रूरी है, जो उसे ज्ञानी बनाती है।

  • समाज का सर्वांगीण विकास

    वैदिक काल में शिक्षा का उद्देश्य आदर्श और महान था। लेकिन समय के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्यों में भी परिवर्तन होता रहा वैदिक काल में जहां शिक्षा अध्यात्म , संगीत, वेद उपनिषद, राजनीति, रणकौशल, आदि पर आधारित हुआ करती थी। मध्यकाल में शिक्षा का उद्देश्य धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए हो गया। वहीं आधुनिक काल में शिक्षा का उद्देश्य पुनः बालक के सर्वांगीण विकास पर आधारित हो गया।

  • बेरोजगार लोगों को रोजगार देने कार्यक्रम चलाना

    शिक्षा से कौशल और हुनर से सुख समृद्धि प्राप्त होती है यदि सुखी जीवन व्यतीत करना है तो हमारे अंदर कौशल की आवश्यकता है, जिसे शिक्षा के बिना हासिल करना संभव नहीं है। आज कौशल प्राप्त करने के लिए अनेक साधन हैं किन्तु पहले यह वंशानुगत हुआ करता था। शिक्षा का वंशानुगत प्रसार ही आज जाति भेद, बड़ा-छोटा, ऊंच-नीच जैसी अनेक भिन्नता निर्माण कर चुका है

  • विद्या प्रचार

    ऐसे में शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए इसे और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है। शिक्षा को जन-जन तक फैलाने के लिए तीव्र प्रयासों की आवश्यकता है। इक्कीसवीं सदी में भारत का हर नागरिक शिक्षित हो, इसके लिए सभी ज़रूरी कदम उठाने होंगे। सर्वशिक्षा अभियान को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है।

  • संगठन एवं सामाजिक सुधर

    शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की, और मौलिक अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति, तथा सौन्दर्यबोध की समझ विकसित हो और साथ ही आर्थिक प्रक्रियाओं व सामाजिक बदलाव की ओर कार्य करने व उसमें योगदान देने की क्षमता भी विकसित हो सके।